Sunday, September 20, 2009

टूटे तेरी निगाह से अगर दिल हबाब का
पानी भी फ़िर पीए तो मज़ा है शराब का

कहेता है आइना की समज़ तर्बियत की क़द्र
जिनके किया है संग को हमसंग आब का

दोज़ख मुजे कबूल है अय मुन्किरो नकिर
लेकिन नही दिमाग सवालों जवाब का

था किसके दिलको कश्मकशे इश्क का दिमाग
या रब बुरा हो दीदा-ऐ-खानाखराब का

'सौदा ' ! निगाहों दीदा-ऐ-तहेकिक के हुजुर
जल्वा हर एक जर्रे मै है आफताब का
--- मिर्जा मोहम्मद रफी 'सौदा'

हबाब = बुलबुला , तर्बियत =परवरिश , मुन्किरो नकिर = कब्र में सवाल पूछने वाले दो फरिस्ते

Tuesday, September 15, 2009

) जाते हुए कहते हो 'कयामतको मिलेंगे ',
क्या खूब ! क़यामत का है कोई दिन और.

( ग़ालिब का कहने का मतलब क्या आप जा रहे हो वो क़यामत नही तो क्या है ?)

) मुजको पूछा तो कुछ गजब हुआ ,
मै गरीब और तू गरीब-नवाज

) 'ग़ालिब' नदिमे-दोस्त से आती है बू--दोस्त
मशगूले -हक हू बंदगी--बू तुराब में .

( नदिमे-दोस्त=दोस्त का दोस्त, बू--दोस्त= दोस्त की खुशबू ,हक=खुदा, बू तुराब=अबू तुराब =मौला अली )
----मिर्जा ग़ालिब (दीवान--ग़ालिब में से ..)

Saturday, September 12, 2009

सरापा हुस्न, हमा आफताब तू ही था
नज़र नज़र में ख़ुद अपना जवाब तू ही था

निगार -ओ- नक्श की दिलकश किताब तू ही था
हर अहल-ऐ-दिल के लिए इन्तिखाब तू ही था

नज़र में यू तो फरेबो के सानहे ये बहुत
मगर यकीन की ज़द पर सुराब तू ही था

सब अदल-ऐ-बज़म थे सैराब ज़ुमते उट्ठे
जो की कम न हुई शराब तू ही था

सुनाई देती रही पहरों बाज़गश्त ' ज़फर'
सुखनवरों खनकता रबाब तू ही था.
-- ज़फर मुरादाबादी