सरापा हुस्न, हमा आफताब तू ही था
नज़र नज़र में ख़ुद अपना जवाब तू ही था
निगार -ओ- नक्श की दिलकश किताब तू ही था
हर अहल-ऐ-दिल के लिए इन्तिखाब तू ही था
नज़र में यू तो फरेबो के सानहे ये बहुत
मगर यकीन की ज़द पर सुराब तू ही था
सब अदल-ऐ-बज़म थे सैराब ज़ुमते उट्ठे
जो की कम न हुई शराब तू ही था
सुनाई देती रही पहरों बाज़गश्त ' ज़फर'
सुखनवरों खनकता रबाब तू ही था.
-- ज़फर मुरादाबादी
आपका हिन्दी चिट्ठाजगत में हार्दिक स्वागत है. आपके नियमित लेखन के लिए अनेक शुभकामनाऐं.
ReplyDeleteएक निवेदन:
कृप्या वर्ड वेरीफीकेशन हटा लें ताकि टिप्पणी देने में सहूलियत हो. मात्र एक निवेदन है बाकि आपकी इच्छा.
वर्ड वेरीफिकेशन हटाने के लिए:
डैशबोर्ड>सेटिंग्स>कमेन्टस>Show word verification for comments?> इसमें ’नो’ का विकल्प चुन लें..बस हो गया..कितना सरल है न हटाना और उतना ही मुश्किल-इसे भरना!! यकीन मानिये!!.
चिट्ठाजगत में हार्दिक स्वागत है
ReplyDeleteसुंदर चयन
ReplyDeleteबहुत शानदार लिखा है, आपने। आपका स्वागत है। मेरे ब्लॉग पर भी तशरीफ लाएं।
ReplyDeleteकाफी अच्छी गजल है। कृपया इस लिंक को भी देखें -
ReplyDeletehttp://shianetwrk.blogspot.com
bahut hee khub.narayan narayan
ReplyDeleteगजल देवनागरी में लिखी उर्दू गजल लगती है. टीप में उर्दू शब्दों के अर्थ भी लिख दिए होते तो समझने में आसानी होती.
ReplyDeletejafar sahaab ki ye gazal,, kabil-e-tareef hai bahut hi achchi rachna lagi hame daad kabool ho..
ReplyDeleteDeepak "bedil"
http://ajaaj-a-bedil.blogspot.com
ब्लोगिंग जगत में आपका स्वागत है. आपको पढ़कर बहुत अच्छा लगा. सार्थक लेखन हेतु शुभकामनाएं. जारी रहें.
ReplyDelete---
Till 25-09-09 लेखक / लेखिका के रूप में ज्वाइन [उल्टा तीर] - होने वाली एक क्रान्ति!