Saturday, September 12, 2009

सरापा हुस्न, हमा आफताब तू ही था
नज़र नज़र में ख़ुद अपना जवाब तू ही था

निगार -ओ- नक्श की दिलकश किताब तू ही था
हर अहल-ऐ-दिल के लिए इन्तिखाब तू ही था

नज़र में यू तो फरेबो के सानहे ये बहुत
मगर यकीन की ज़द पर सुराब तू ही था

सब अदल-ऐ-बज़म थे सैराब ज़ुमते उट्ठे
जो की कम न हुई शराब तू ही था

सुनाई देती रही पहरों बाज़गश्त ' ज़फर'
सुखनवरों खनकता रबाब तू ही था.
-- ज़फर मुरादाबादी

9 comments:

  1. आपका हिन्दी चिट्ठाजगत में हार्दिक स्वागत है. आपके नियमित लेखन के लिए अनेक शुभकामनाऐं.

    एक निवेदन:

    कृप्या वर्ड वेरीफीकेशन हटा लें ताकि टिप्पणी देने में सहूलियत हो. मात्र एक निवेदन है बाकि आपकी इच्छा.

    वर्ड वेरीफिकेशन हटाने के लिए:

    डैशबोर्ड>सेटिंग्स>कमेन्टस>Show word verification for comments?> इसमें ’नो’ का विकल्प चुन लें..बस हो गया..कितना सरल है न हटाना और उतना ही मुश्किल-इसे भरना!! यकीन मानिये!!.

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  2. चिट्ठाजगत में हार्दिक स्वागत है

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  3. बहुत शानदार लिखा है, आपने। आपका स्वागत है। मेरे ब्लॉग पर भी तशरीफ लाएं।

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  4. काफी अच्छी गजल है। कृपया इस लिंक को भी देखें -
    http://shianetwrk.blogspot.com

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  5. गजल देवनागरी में लिखी उर्दू गजल लगती है. टीप में उर्दू शब्दों के अर्थ भी लिख दिए होते तो समझने में आसानी होती.

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  6. jafar sahaab ki ye gazal,, kabil-e-tareef hai bahut hi achchi rachna lagi hame daad kabool ho..

    Deepak "bedil"
    http://ajaaj-a-bedil.blogspot.com

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  7. ब्लोगिंग जगत में आपका स्वागत है. आपको पढ़कर बहुत अच्छा लगा. सार्थक लेखन हेतु शुभकामनाएं. जारी रहें.


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    Till 25-09-09 लेखक / लेखिका के रूप में ज्वाइन [उल्टा तीर] - होने वाली एक क्रान्ति!

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