Sunday, September 20, 2009

टूटे तेरी निगाह से अगर दिल हबाब का
पानी भी फ़िर पीए तो मज़ा है शराब का

कहेता है आइना की समज़ तर्बियत की क़द्र
जिनके किया है संग को हमसंग आब का

दोज़ख मुजे कबूल है अय मुन्किरो नकिर
लेकिन नही दिमाग सवालों जवाब का

था किसके दिलको कश्मकशे इश्क का दिमाग
या रब बुरा हो दीदा-ऐ-खानाखराब का

'सौदा ' ! निगाहों दीदा-ऐ-तहेकिक के हुजुर
जल्वा हर एक जर्रे मै है आफताब का
--- मिर्जा मोहम्मद रफी 'सौदा'

हबाब = बुलबुला , तर्बियत =परवरिश , मुन्किरो नकिर = कब्र में सवाल पूछने वाले दो फरिस्ते

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